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सुंडाराम वर्मा, ये नाम राजस्थान के किसानों के बीच किसी परिचय का मोहताज नहीं है।

सुंडाराम वर्मा, ये नाम राजस्थान के किसानों के बीच किसी परिचय का मोहताज नहीं है। नए-नए प्रयोगों से वो अपने क्षेत्र में बदलाव की ऐसी बयार लेकर आए कि तस्वीर ही बदल गई। उनके प्रयासों को सराहते हुए सीकर के दाता गांव निवासी सुंडाराम वर्मा को 2021 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द द्वारा देश के चौथे सबसे बड़े सम्मान ‘पद्मश्री’ से नवाज़ा भी गया है।
जहां चाह है वहां राह है, मेहनत और सच्ची लगन के बूते सब कुछ संभव है। उन्होंने एक लीटर पानी से एक पेड़ को विकसित करने की उन्नत तकनीक ईज़ाद की। इस तकनीक से अब तक वो अपने इलाके में करीब 50 हज़ार से भी ज़्यादा पेड़-पौधे लगवा चुके हैं। आप भी सोच रहे होंगे ऐसा कैसे मुमकिन है कि एक पौधे को पेड़ बनने में सिर्फ़ एक लीटर पानी की ही ज़रूरत हो? कोई पेड़ 1 लीटर पानी में कितने दिन फूलेगा-फलेगा? लेकिन ऐसा मुमकिन किया सुंडाराम वर्मा ने। उनकी तकनीक से 1 लीटर पानी पेड़ के पूरे जीवन के लिए काफ़ी होता है।

कैसे ईज़ाद हुई ये तकनीक?

सुंडाराम वर्मा एक कृषि परिवार से ही आते हैं। 1972 में विज्ञान से बीएससी करने के बाद एक या दो नहीं, बल्कि तीन-तीन बार राजकीय सेवा में चयनित होने के बावजूद उन्होंने खेती-किसानी को ही अपना पेशा चुना। ग्रेजुएशन के बाद खेत में काम करते-करते उन्हें 10 साल हुए। इन 10 सालों में राजस्थान के कृषि विश्वविद्यालयों के अलावा सुंडाराम कृषि और वन विभाग के भी लगातार संपर्क में रहे।

किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत में सुंडाराम कहते हैं कि राजस्थान में बरसात इतनी कम होती है कि बरसाती फसल के लिए भी पानी कम पड़ जाता है। उनके क्षेत्र में सालाना बारिश ही 25 सेमी के आसपास होती है। इतनी कम बारिश से बरसात की फसल के साथ-साथ सर्दियों की फसल भी ली जा सके, ऐसा संभव नहीं हो पाता। फिर उन्होंने इस तकनीक को पौधों पर अपनाने की सोची ।

सुंडाराम बताते हैं कि फसलों की जड़ें लगभग एक फ़ीट की होती हैं। जब एक फ़ीट की जड़ों में ही फसलें तीन से चार महीनों में तैयार हो जाती हैं, तो अगर फसल की जगह पौधे लगा दें तो पहले साल में ही उसकी जड़ें बहुत गहराई तक जा सकती है। सुंडाराम कहते हैं कि अगर खरपतवार और केषिका नालियों (Capillary) द्वारा होने वाले पानी के नुकसान को रोक दिया जाए तो भूमि में 30 सेमी गहराई या इससे नीचे जो पानी मौजूद रहता है, वो किसी भी वनीय पौधे के पनपने के लिए काफ़ी होता है। बस फिर उन्होंने इस तकनीक पर अपने प्रयोग करने शुरू कर दिए।

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